मकर संक्रांति Makar Sankranti

मकर संक्रांति हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। पौष माह में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब इस संक्रांति को मनाया जाता है। इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है इसलिए इसे उत्तरायणी के नाम से भी पुकारा जाता है। मकर संक्रांति का पर्व जनवरी माह की 13/14/15 तारीख को पूरे भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही पृथ्वी पर शुभ और सुहाने दिनों की शरुआत होती है।
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इलाहाबाद में गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है जो माघ मेले के नाम से विख्यात है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से प्रारंभ होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता है।बिहार में मकर संक्रांति के व्रत को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने एवं दान करने की प्रथा है। गंगा स्नान के पश्चात ब्राह्मणो एवं पूज्य व्यक्तियों में तिल एवं मिष्ठान के दान का विशेष महत्व है। बंगाल में भी पवित्र स्नान के बाद तिल की प्रथा है। मकर संक्रांति पर गंगा सागर स्नान विश्व प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए वर्षों की तपस्या से के गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित होने पर विवश कर दिया था। मकर संक्रांति के दिन महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और उनके पीछे पीछे चलते हुए गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में समा गई थीं।
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रुप में जाना जाता है। उत्तर भारत में यह पर्व 'मकर सक्रान्ति के नाम से और गुजरात में 'उत्तरायण' नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति को पंजाब में लोहडी पर्व, उतराखंड में उतरायणी, गुजरात में उत्तरायण, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के शुभ समय पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना भी की जाती है। शास्त्रीय सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ साथ सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
आज ही के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है। मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में बदलाव आना आरम्भ होता है। यही कारण है कि रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। सूर्य के उतरी गोलार्द्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है। इसके फलस्वरुप प्राणियों में चेतना और कार्यशक्ति का विकास होता है। मकर-संक्रान्ति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं, आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है।
मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए। मकर संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था। इसके अतिरिक्त देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था।

पुण्य पर्व है संक्रांति
उत्तरायन देवताओं का अयन है। यह पुण्य पर्व है। इस पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। उत्तरायन में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्यवर्द्धक होने से साथ-साथ पापों का विनाशक है।सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है। उत्तरायन का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायन को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायन में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।

मकर संक्रांति पर तिल का ही महत्व क्यों है
हमारे ऋषि मुनियों ने मकर संक्रांति पर्व पर तिल के प्रयोग को बहुत सोच समझ कर परंपरा का अंग बनाया है। कहते हैं इस दिन से दिन तिल भर बड़ा होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह शरद ऋतु के अनुकूल होता है। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्व है, इसीलिए हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन, यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है। तिल वर्षा ऋतु की खरीफ की फसल है। बुआई के बाद लगभग दो महीनों में इसके पौधे में फूल आने लगते हैं और तीन महीनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। इसका पौधा 3-4 फुट ऊंचा होता है। इसका दाना छोटा व चपटा होता है। इसकी तीन किस्में काला, सफेद और लाल विशेष प्रचलित हैं। इनमें काला तिल पौष्टिक व सर्वोत्तम है। आयुर्वेद के छह रसों में से चार रस तिल में होते हैं, तिल में एक साथ कड़वा, मधुर एवं कसैला रस पाया जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है। इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना पश्चात गुड़, चावल और तिल का दान श्रेष्ठ माना गया है। मकर संक्रान्ति के दिन खाई जाने वाली वस्तुओं में जी भर कर तिलों का प्रयोग किया जाता है। तिल से बने व्यंजनों की खुशबू मकर संक्रान्ति के दिन हर घर से आती महसूस की जा सकती है। इस दिन तिल का सेवन और साथ ही दान करना शुभ होता है। तिल का उबटन, तिल के तेल का प्रयोग, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल का पान, तिल- हवन, तिल की वस्तुओं का सेवन व दान करना व्यक्ति के पापों में कमी करता है। 

कैसे मनाएं संक्रांति
  • इस दिन प्रातःकाल उबटन आदि लगाकर तीर्थ के जल से मिश्रित जल से स्नान करें।
  • यदि तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें। 
  • तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है।
  • स्नान के उपरांत नित्य कर्म तथा अपने आराध्य देव की आराधना करें।
  • पुण्यकाल में दांत मांजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना व मैथुन काम विषयक कार्य कदापि नहीं करना चाहिए।
  • इस दिन पतंगें उड़ाए जाने का विशेष महत्व है। 
अपनी राशि के अनुसार मकर संक्रांति पर क्या दान करें
मकर संक्रांति पर दान का बहुत महत्व है। विशेषकर इस दिन तिल, खिचड़ी, गुड़ एवं कंबल दान करने का महत्व है। अन्य वस्तुएं भी दान दे सकते हैं। राशि अनुसार मकर संक्रांति पर क्या दान करें कि घर में शुभता और मांगल्य आने लगे।
  • मेष : गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान दें।
  • वृषभ : सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान दें।
  • मिथुन : मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान दें।
  • कर्क : चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान दें।
  • सिंह : तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान दें।
  • कन्या : खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान दें।
  • तुला : सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान दें।
  • वृश्चिक : मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान दें।
  • धनु : पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान दें।
  • मकर : काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान दें।
  • कुंभ : काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान दें।
  • मीन : रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान दें।
मकर संक्रांति के दिन ही असरकारी है सूर्य का यह खखोल्क मंत्र
प्रस्तुत मंत्र सूर्य का दिव्य और चमत्कारी मंत्र है। इस मंत्र को मकर संक्रांति के दिन पढ़ने से हर तरह के कार्य सिद्ध होते हैं। विशेषकर संतान प्राप्ति और रोजगार के लिए इस मंत्र का आश्चर्यजनक प्रभाव देखा गया है।
ॐ नमः खखोल्काय' 
भगवान सूर्य अपने सारथि 'अरुण" से इस मंत्र के विषय में कहते हैं- हे खगश्रेष्ठ। मेरे मंडल के विषय में सुनो। मेरा कल्याणमय मंडल "खखोल्क" नाम से विद्वानों के ज्ञान मंडल में और तीनों लोकों में विख्यात है। यह तीनों देवों एवं तीनों गुणों से परे एवं सर्वज्ञ है। यह सर्वशक्तिमान है। "ॐ" इस एकाक्षर मंत्र में यह मंडल अवस्थित है। जैसे घोर संसार-सागर अनादि है वैसे ही "खखोल्क" भी अनादि है और संसार-सागर का शोधक है। जैसे व्याधियों की औषधि होती है वैसे ही यह मंत्र संसार-सागर के लिए औषधि है। मोक्ष चाहने वालों के लिए मुक्ति का साधन और सभी अर्थो का साधक है। खखोल्क नाम का यह मंत्र सदैव उच्चारण और स्मरण करने योग्य है। जिसके हृदय में "ॐ नमः खखोल्काय" मंत्र स्थित है उसी ने सब कुछ पढ़ा है सुना है और अनुष्ठित किया है, ऐसा समझना चाहिए। मनीषियों ने इस खखोल्क मंत्र को "मार्तण्ड" के नाम से प्रतिष्ठापित किया है। इस मंत्र के प्रति श्रद्धानत् होने पर पुण्य प्राप्त होता है।

मकर संक्रांति बधाई सन्देश






















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