Navgrah Puja नवग्रह पूजा विधि


किसी भी पूजन कार्य में नवग्रह पूजा का विशेष महत्व है। नवग्रह पूजा हेतु ग्रहों का आवहान करके पहले उनकी स्थापना करें। फिर बाएं हाथ में अक्षत लेकर मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत अर्पित कर नवग्रहों का पूजन करें।

सूर्य : लाल अक्षत और लाल पुष्प लेकर निम्नलिखित मंत्र से सूर्य का आवाहन करें
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मत्यं च।
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्‌ ॥

जपा कुसमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्‌ ।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः कलिंगदेशोद्भव कश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य! इहागच्छ, इहतिष्ठ
ॐ सूर्याय नमः, श्री सूर्यमावाहयामि स्थापयामि च ।


भावार्थ : कश्यप गौत्र में उत्पन्न हे सूर्यदेव , आप मेरे शुभ कार्य में पधारकर कल्याण करें।


चंद्र : बाएं हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर दाएं हाथ से छोड़ते हुए इस मंत्र से चंद्र का आहवान करें :


ॐ इमं देवा असनपथ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येंद्रियाय ।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानाथ राजा ॥


दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्‌ । ज्योत्स्नापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्धव आत्रेय गोत्र शुक्लवर्ण भो सोम! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ सोमाय नमः। सोममावाहयामि, स्थापयामि च ।


भावार्थ : रश्मिपति हे चंद्रदेव, आप मेरे शुभ कार्य में पधारकर कल्याण करें।


मंगल :
रक्तिम पुष्प और अक्षत दाएं हाथ में लेकर बाएं हाथ से छोड़ते हुए इस मंत्र से मंगल देव का आवहान करें


ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः कुकुत्पतिः पृथिव्या अयम्‌। अपाध रेताधसी जिन्वति ॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्तेजस्समप्रभम्‌ ।कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम्‌ ॥


ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ भौमाय नमः, भौममावाहयामि स्थापयामि च ।


भावार्थ : विद्द्युत समान तेजस्वी भूमिपुत्र हे मंगलदेव , आप मेरे शुभ कार्य में पधारकर कल्याण करें।


बुध :
पीत व हरित अक्षत दाएं हाथ में लेकर बाएं हाथ से छोड़ते हुए इस मंत्र से मंगल देवता का आवाहन करे


ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सथजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्‌ विश्वे देवा जयमानश्च सीदत ॥
प्रियंगकलिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम्‌ ॥


ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ बुधाय नमः। बुधमावाहयामि, स्थापयामि च ।


भावार्थ : हे सौम्य बुधदेव ! आप पूजन में पधारकर स्थापित हों और मुझे निर्भय करें


बृहस्पति
अष्टदल से अंकित बृहस्पति का आह्वान पीले रंग से रंगे अक्षत और पुष्प अर्पित कर करें।


ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसः ऋतप्रजात्‌ तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्‌ ॥
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनि बृहस्पतये त्व ।देवानां च मनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम्‌ ।वंदनीयं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यंहम्‌ ॥


ॐ भूर्भुवः स्वः सिन्धुशोद्धव आडिगंरसगोत्र पीतवर्ण भी गुरो! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि स्थापयामि च ।


भावार्थ : हे देवगुरु बृहस्पति , आप पूजन कार्य में पधारे।


शुक्र
दैत्यगुरु शुक्र भगवान का आह्वान करने के लिए श्वेत फूल और अक्षत देवता को अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :


ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः ।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान शुक्रमन्धस इंद्रस्येद्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥


हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्‌ । सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवमावाहयाम्यमहम्‌ ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः भोजकटदेशोद्धव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शुक्राय नमः, क्रमावाहयामि स्थापयामि च ।


भावार्थ : हे दैत्याचार्य शुक्रेव , आप पूजन कार्य में पधारे।


शनि
सूर्य पुत्र शनि का आह्वान करने के लिए काले रंग से रंगे अक्षत और काले फूल समर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :


ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरपि स्रवन्तु नः ।।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌ ।छायामार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम्‌ ॥



ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्धव कश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः, शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि च ।


भावार्थ : हे सूर्यपुत्र शनिदेव ! कृपा करके आप शुभ पूजन में पधारे और पूजन कार्य के पूर्ण करें।


राहु
सूर्य पुत्र शनि का आह्वान करने के लिए काले रंग से रंगे अक्षत और काले फूल समर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :


ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरपि स्रवन्तु नः ।।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌ ।छायामार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम्‌ ॥



ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्धव कश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः, शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि च ।


भवार्थ : हे अर्धकाय राहु ! आप पूजन में पधारकर इसे सफल करें।


केतु
केतु का आह्वान करने के लिए धूमिल अक्षत और फूल लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें -


ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्धिरजायथाः ॥


पलाशधूम्रसगांश तारकाग्रहमस्तकम्‌ ।रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतु मावाहयाम्यहम्‌ ॥


ॐ भूर्भुवः स्वः अंतवेदिसमुद्धव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भी केतो! इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ केतवे नमः, केतुमावाहयामि स्थापयामि च ।
भावार्थ : हे रौद्ररूप - धूम्रवर्ण केतु। आप पूजन में पधारकर ऐसे सफल करें।

नवग्रह : नवग्रहों के आह्वान और स्थापना के बाद हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र उच्चारित करते हुए नवग्रह मंडल में प्रतिष्ठा के लिए अर्पित करें।

ॐ मनो जूर्तिर्ज्षतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं ततनोत्वरिष्टं यज्ञगुँ सममं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो3म्प्रतिष्ठा ॥

निम्न मंत्र से नवग्रहों का आह्वान करके उनकी पूजा करें :
अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।

प्रार्थना
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मंगलं मंगलः सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्र सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्यो नतिं नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनकूला ग्रहाः ॥
इस प्रकार नवग्रहों को शुभ कार्य की सफलता हेतु आव्हान एवं प्रतिष्ठा करने के पश्चात्‌ पूजन प्रारंभ होता है।

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