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प्रदोष व्रत का महत्व पूजन विधि एवं व्रत कथा

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प्रदोष व्रत का महत्व सायंकाल के बाद और रात्रि आने के पूर्व दोनों के बीच का जो समय है उसे प्रदोष कहते है। व्रत करने वाले व्यक्ति को उसी समय भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए। त्रयोदशी अर्थात प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। इस व्रत से उसके सम्पूर्ण पापो का नाश हो जाता है। सूतजी कहते है की प्रदोष का व्रत करने वालों को सौ गाय के दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान से करता है उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं। प्रदोष व्रत पूजन व उद्यापन विधि प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति को त्रयोदशी के दिन, दिन भर भोजन नहीं करना चाहिए। शाम के समय जब सूर्यास्त में तीन घडी का समय शेष रह जाए, तब स्नानादि कर्मो से निवृत्त होकर, श्वेत वस्त्र धारण करके तत्पश्चात संद्यावंदन करने के बाद शिवजी का पूजन करें। पूजा के स्थान को स्वच्छ जल से धोकर वहां मंडप बनाये, वहां पांच रंगो के पुष्पों से पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुश का आसन बिछायें, आसन पर पूर्वाभिमुख बैठे। इसके बाद महेश्वर का ध्यान करें। प्रदोष व्रत के उद्यापन का तरीका सभी वारों की व्रत कथा के बाद अंत में बताया गया है। प्रदोष व्रत कथा व्रत